नंदा देवी की कथा: हिमालय की देवी का दिव्य आशीर्वाद.

 नंदा देवी की कथा: हिमालय की देवी का दिव्य आशीर्वाद



नंदा देवी, हिमालय की सबसे पवित्र और पूजनीय देवी मानी जाती हैं। उनकी कथा हमारे लोक जीवन, संस्कृति और परंपराओं में गहराई से बसी हुई है। हिमालय की गगनचुंबी चोटियों के बीच स्थित नंदा देवी पर्वत न केवल अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उसकी धार्मिक महत्ता भी अपार है। यह स्थान नंदा देवी का निवास स्थान माना जाता है, और वह देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जिनका सम्बन्ध उत्तराखंड की राजकीय और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा है।


यह कथा उस समय की है जब धरती पर मनुष्यों और देवताओं के बीच सीधा संवाद होता था। हिमालय पर्वत के बीच एक राज्य था जिसका नाम था 'कुर्मांचल'। यह राज्य प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से भरा हुआ था। ऊंचे-ऊंचे देवदार के वृक्ष, कल-कल बहते झरने, और चहुंओर फैली हरियाली इस राज्य को एक स्वर्गिक रूप देती थी। कुर्मांचल के राजा का नाम था हेमराज। वे एक धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और प्रजावत्सल राजा थे।


नंदा देवी का जन्म:


राजा हेमराज और उनकी पत्नी रानी सुदक्षिणा की संतान नहीं थी। उन्होंने वर्षों तक संतान सुख की प्राप्ति के लिए अनेक व्रत, पूजाएँ और तप किए, किन्तु उन्हें कोई संतान नहीं हुई। दोनों निराश हो चुके थे। एक दिन, राजा ने देवी पार्वती की घोर तपस्या करने का निश्चय किया। वे हिमालय के दुर्गम जंगलों में चले गए और कठोर तप में लीन हो गए।


अनेक वर्षों तक तपस्या के पश्चात, देवी पार्वती ने प्रकट होकर उन्हें वरदान दिया, "हे राजन, तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें एक कन्या का वरदान देती हूँ। वह कन्या न केवल तुम्हारे वंश को आगे बढ़ाएगी, बल्कि वह इस संसार की रक्षा के लिए भी अवतरित होगी। वह कन्या मेरी ही अंश होगी, और उसका नाम 'नंदा' होगा।"


राजा हेमराज और रानी सुदक्षिणा ने नंदा नामक बालिका को जन्म दिया। नंदा का जन्म जैसे ही हुआ, राज्य में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी। चारों ओर मंगल कार्य होने लगे, और लोग नंदा के रूप को देखकर मोहित हो गए। नंदा देवी बचपन से ही असाधारण गुणों वाली बालिका थीं। वह स्वभाव से गंभीर और वीर थीं। प्रकृति के प्रति उनका अगाध प्रेम था और वह अक्सर पर्वतों पर जाकर ध्यानमग्न हो जाया करती थीं।


नंदा की विशेष शक्तियाँ:


जैसे-जैसे नंदा बड़ी होती गईं, उनके चमत्कारिक गुण प्रकट होते गए। एक दिन, जब वह जंगल में ध्यान कर रही थीं, तो एक भयंकर राक्षस वहाँ आ गया। वह राक्षस राज्य को नष्ट करने की योजना बना रहा था। नंदा ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसकी उपस्थिति को महसूस किया और तत्काल उसके समक्ष प्रकट हुईं। राक्षस ने जब नंदा को देखा, तो वह ठहाके मारकर हँस पड़ा, "हे नन्ही कन्या, तुम मेरा क्या कर सकती हो?"


किन्तु नंदा ने बिना किसी भय के अपने अंदर की दिव्य शक्ति को जागृत किया और एक प्रचंड शक्ति से उस राक्षस का वध कर दिया। राक्षस के वध के बाद, नंदा की वीरता की ख्याति पूरे राज्य में फैल गई। लोग उन्हें अब केवल एक सामान्य राजकुमारी नहीं मानते थे, बल्कि उन्हें देवी के रूप में पूजने लगे थे।


विवाह का प्रस्ताव:


जब नंदा युवावस्था में पहुंचीं, तो उनके रूप और गुणों की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। कई राजा और राजकुमार उनसे विवाह का प्रस्ताव लेकर कुर्मांचल आए, लेकिन नंदा का मन सांसारिक बंधनों से परे था। उन्होंने अपने पिता से कहा, "पिता, मेरा यह जीवन सांसारिक सुखों के लिए नहीं है। मेरा जन्म केवल इस राज्य की रक्षा और धर्म की पुनः स्थापना के लिए हुआ है। मैं एक साधारण स्त्री नहीं हूँ, मैं देवी का अंश हूँ।"


राजा हेमराज ने अपनी पुत्री की इस इच्छा को स्वीकार किया, लेकिन समाज और राज्य के दबाव के चलते वे असमंजस में थे। उसी समय, पड़ोसी राज्य का राजा, जिसे अत्यंत लोभी और अधर्मी माना जाता था, नंदा से विवाह करने का प्रस्ताव लेकर आया। वह राजा अत्यंत शक्तिशाली था, और उसके पास विशाल सेना थी।


हेमराज ने नंदा से इस प्रस्ताव के बारे में चर्चा की। नंदा ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "पिता, यह विवाह संभव नहीं है। वह व्यक्ति धर्म का अनादर करता है और मैं अधर्म के साथ कभी नहीं जुड़ सकती।"


देवी का आह्वान और प्रस्थान:


राजा हेमराज समझ चुके थे कि उनकी पुत्री सांसारिक बंधनों में नहीं बंध सकती। एक दिन, नंदा ने हिमालय के दुर्गम पर्वतों की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने पिता और माता से कहा, "मेरा यह शरीर केवल इस संसार की सेवा के लिए था। अब समय आ गया है कि मैं अपनी वास्तविक स्वरूप में वापस जाऊँ। मेरे जाने के बाद भी मैं इस राज्य और इसके लोगों की रक्षा करती रहूँगी।"


राजा और रानी यह सुनकर अत्यंत दुखी हुए, लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री की इच्छा का सम्मान किया। नंदा देवी ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया और उच्चतम शिखरों पर जाकर ध्यानमग्न हो गईं। वहाँ से उन्होंने अपना लौकिक शरीर त्याग दिया और एक दिव्य रूप में परिवर्तित हो गईं।


कहते हैं कि नंदा देवी आज भी हिमालय की उन ऊंचाइयों पर वास करती हैं। जब-जब राज्य पर कोई संकट आता है, वह अपनी अदृश्य शक्तियों से उसकी रक्षा करती हैं। उत्तराखंड के लोग आज भी नंदा देवी की पूजा करते हैं और हर साल 'नंदा देवी राजजात यात्रा' निकालते हैं, जो कि उनके सम्मान में एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है।


नंदा देवी की महिमा:


नंदा देवी की यह कथा न केवल धार्मिक महत्व की है, बल्कि यह हमें जीवन के उन उच्च आदर्शों की शिक्षा भी देती है, जहाँ व्यक्ति स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और धर्म की सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित करता है। नंदा देवी का त्याग, वीरता और दिव्यता इस बात का प्रतीक है कि सच्ची महानता अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी और साहस में होती है, न कि सांसारिक सुखों में।


समय बीतता गया, लेकिन नंदा देवी की महिमा और उनकी गाथाएँ लोगों के दिलों में बसती चली गईं। उनके नाम से जुड़े त्यौहार और धार्मिक अनुष्ठान उनके प्रति लोगों के गहरे आस्था और सम्मान को दर्शाते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में नंदा देवी का मंदिर और उनका पर्वत आज भी श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।


नंदा देवी की यह कहानी एक अद्वितीय प्रेम, त्याग और ईश्वरीय शक्ति की गाथा है, जो हमें जीवन के वा

स्तविक उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करती है।


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